Sunday, 14 August 2011

अन्तर मंथन

ये कैसी है मझधार एक तरफ है देश प्रेम और एक तरफ है अपनों का प्यार
मन करता है करदू नौछावर अपना सब कुछ इस मतर्भूमि  के नाम, मगर मासूम बचपन को कौन देगा दुलार
फिर सोचता हू की नहीं मिलिगा मोका यह दुबारा करने का कुछ काम उही  बीत जायेगी यह जिंदगानी बन करके गुलाम
कैसे जी पाएंगे,  खुद  से नज़र कैसे  मिलाएंगे अगर न आया ये जीवन देश के काम, मारना जीना तोह हाथ है उसके जो देता है सबको जीवन वरदान
सुलगी है जो चिंगारी क्या मैं बनने दू उसको आग, कही जल न जाये मेरा आशियाना अत्ता है बस यही ख्याल
फिर देखता हू पीछे जिन्होंने किया अपना सब कुछ बलिदान कैसे जलकर बनता है सोना कैसे अत्ता है निखार
बंधन तो कसते रहेंगे बनके रिश्तों के फ़र्ज़, मगर कैसे चूका पियेंगे जो है मातरभूमि का है  क़र्ज़
मोका है दस्तूर भी है और है दिल मैं जो  जोश कहता है करदो अपने अप  को भारत माता के चरणों मैं  स्राबोश.................वन्दे मातरम............भारत माता की जय .


 


2 comments:

  1. Don't be left behind to serve our nation today, or else you'll loose the pride to be an Indian

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  2. सही कहा ....भारत माता की जय.........

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