सरकारी लोकपाल बिल तथा अन्ना एवं सिविल सोसायटी द्वार ड्राफ्ट किया गया जनलोकपाल बिल पर सिविल सोसायटी द्वारा कराये गये सर्वे के नतीजे आज सिविल सोसायटी द्वारा मीडिया के समक्ष रखे गये। कुटिल सिब्बल के चुनाव क्षेत्र चॉदनी चौक को सिविल सोसायटी ने जानबूझकर सर्वे के लिये चुना था क्योंकि कुटिल सिब्बल द्वारा हमेशा सिविल सोसायटी के सदस्यों पर यह आरोप लगाया जाता रहा है, कि सिविल सोसायटी के चार पॉच लोग सारे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते इसलिऐ हम इस सोसायटी को नही मानते लेकिन अब कुटिल के अपने चुनाव क्षेत्र में ही उनके इस आरोप की धज्जियॉ उड़ गयी है। अब अपने बचाव के लिऐ कुटिल सिब्बल संविधान की दुहाई देकर बडे़ इमोशनल ढंग से मीडिया के सामने बयान दे रहा है कि हमारे बुजुर्गो द्वारा 1950 में जो संविधान हमे दिया गया उसके सामानान्तर अलग से सिविल सोसायटी, जिसकी जवाबदेही किसी के प्रति भी नही है उसके द्वारा थोपा गया जनलोकपाल बिल को मान्य कर संविधान के ढॉचे से खिलवाड़ नहीं करने दिया जा सकता।
दूसरी और कॉग्रेस प्रवक्ता मनीष (मनहूस) तिवारी द्वारा बड़ी बेशर्मी से शायराना अंदाज में अन्ना एवं सिविल सोसायटी को सन 2014 के लोकसभा चुनावो ंमें चॉदनी चौक से चुनाव लड़कर जीतने का चैलेंज किया जा रहा है जो उनकी बौखालाहट को प्रदर्शित करता है। लगता है आज भी यूपीए खासकर कॉग्रेस सिविल सोसायटी को बहुत कम करके उसका ऑकलन कर रही है उसे शायद देश की नब्ज की जानकारी नहीं है इतना सब होने के बाद भी उन्हें आज भी सिविल सोसायटी के चार पॉच लोग ही दिखाई देते है लेकिन अंदर का धधकता ज्वालामुखी दिखाई नहंी दे रहा है जो अब फटने की कगार पर है?
यदि इनके उदाहरणों को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के परिपेक्ष्य में देखा जाऐ तो जब भारत में अंग्रेजों के विरूद्ध अहिंसक तरीके से भारत छोड़ो ऑदोलन चल रहा था तब भी सारे अभियान की बागडोर महात्मागॉधी के अलावा पॉच सात लोगो ंने थाम रखी थी लेकिन अंग्रेजों को देश की नब्ज की जानकारी थी उन्हंे मालूम था कि सारे देश में आग फैल चुकी है इसलिये वे इस अभियान से जुडे़ लोगों खासकर उसके अगुआ महात्मा गॉधी से हमेशा बातचीत का रास्ता ही अपनाते रहे ठीक इसके विपरीत आज के काले अंग्रेजों को इस बात का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है ? ऊपर से अहंकारी तरीके से एवं बौखलाकर ऊल जुलूल बयान देकर जनता के रोष को और बढ़ा रहे है। यूपीऐ एवं कॉग्रेस के सारे नेता मीडिया में स्वस्थय बहस के स्थान पर उग्र तारीके से उत्तेजना पूर्ण ढंग से अनर्गल आरोप प्रत्यारोपों से अपना एंव देश का समय बार्बाद कर रहे है।
दूसरी ओर हमेशा की तरह भारत का भ्रष्ट मीडिया भी सरकार के सुर में सुर मिलाकर बहस को तर्कपूर्ण करने की बजाए सरकार के पक्ष में बयान देकर सिविल सोसायटी के अस्तित्व पर ही सवाल खडे़ करने में लगा हुआ है। आज एनडीटीवी पर चल रही बहस में विनोद दुआ जो देश की मीडिया के लिऐ एक बद्दुआ की तरह है , वह भी सर्वेक्षण के नतीजों पर ही सवाल खडे़ करता नजर आ रहा था तथा पत्रकारिता के नाम पर कलंक सरकारी पिट्ठू विनोद शर्मा भी उसके सुर में सुर मिलाता नजर आया।
अभी तो मात्र एक लोकसभा क्षेत्र के नतीजे आऐ है जिसमें 85 प्रतिशत लोगों ने सरकारी लोकपाल के विरूद्ध तथा जनलोकपाल के पक्ष में अपना मत प्रकट किया है तथा 94 प्रतिशत लोगों ने प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने हेतु अपना मत दिया है। यदि सरकार में हिम्मत है तो इस तरह का सर्वे सारे देश में करवाकर देख ले इससे कही अधिक प्रतिशत में मत जनलोकपाल के पक्ष में आऐगा। लेकिन सरकार ऐसा नही करेगी क्योंकि उससे उसकी पोल खुलने का डर है इसलिऐ सरकार भरसक प्रयत्यन करेगी कि अन्ना एवं सिविल सोसायटी के अभियान को बाबा के अभियान की तरह दमनपूर्ण ढंग से कुचल कर समाप्त कर दिया जाऐ लेकिन अब यह होने वाला नही है अब देश जाग चुका है।
सरकारी लोकपाल बिल तथा अन्ना एवं सिविल सोसायटी द्वार ड्राफ्ट किया गया जनलोकपाल बिल पर सिविल सोसायटी द्वारा कराये गये सर्वे के नतीजे आज सिविल सोसायटी द्वारा मीडिया के समक्ष रखे गये। कुटिल सिब्बल के चुनाव क्षेत्र चॉदनी चौक को सिविल सोसायटी ने जानबूझकर सर्वे के लिये चुना था क्योंकि कुटिल सिब्बल द्वारा हमेशा सिविल सोसायटी के सदस्यों पर यह आरोप लगाया जाता रहा है, कि सिविल सोसायटी के चार पॉच लोग सारे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते इसलिऐ हम इस सोसायटी को नही मानते लेकिन अब कुटिल के अपने चुनाव क्षेत्र में ही उनके इस आरोप की धज्जियॉ उड़ गयी है। अब अपने बचाव के लिऐ कुटिल सिब्बल संविधान की दुहाई देकर बडे़ इमोशनल ढंग से मीडिया के सामने बयान दे रहा है कि हमारे बुजुर्गो द्वारा 1950 में जो संविधान हमे दिया गया उसके सामानान्तर अलग से सिविल सोसायटी, जिसकी जवाबदेही किसी के प्रति भी नही है उसके द्वारा थोपा गया जनलोकपाल बिल को मान्य कर संविधान के ढॉचे से खिलवाड़ नहीं करने दिया जा सकता।
दूसरी और कॉग्रेस प्रवक्ता मनीष (मनहूस) तिवारी द्वारा बड़ी बेशर्मी से शायराना अंदाज में अन्ना एवं सिविल सोसायटी को सन 2014 के लोकसभा चुनावो ंमें चॉदनी चौक से चुनाव लड़कर जीतने का चैलेंज किया जा रहा है जो उनकी बौखालाहट को प्रदर्शित करता है। लगता है आज भी यूपीए खासकर कॉग्रेस सिविल सोसायटी को बहुत कम करके उसका ऑकलन कर रही है उसे शायद देश की नब्ज की जानकारी नहीं है इतना सब होने के बाद भी उन्हें आज भी सिविल सोसायटी के चार पॉच लोग ही दिखाई देते है लेकिन अंदर का धधकता ज्वालामुखी दिखाई नहंी दे रहा है जो अब फटने की कगार पर है?
यदि इनके उदाहरणों को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के परिपेक्ष्य में देखा जाऐ तो जब भारत में अंग्रेजों के विरूद्ध अहिंसक तरीके से भारत छोड़ो ऑदोलन चल रहा था तब भी सारे अभियान की बागडोर महात्मागॉधी के अलावा पॉच सात लोगो ंने थाम रखी थी लेकिन अंग्रेजों को देश की नब्ज की जानकारी थी उन्हंे मालूम था कि सारे देश में आग फैल चुकी है इसलिये वे इस अभियान से जुडे़ लोगों खासकर उसके अगुआ महात्मा गॉधी से हमेशा बातचीत का रास्ता ही अपनाते रहे ठीक इसके विपरीत आज के काले अंग्रेजों को इस बात का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है ? ऊपर से अहंकारी तरीके से एवं बौखलाकर ऊल जुलूल बयान देकर जनता के रोष को और बढ़ा रहे है। यूपीऐ एवं कॉग्रेस के सारे नेता मीडिया में स्वस्थय बहस के स्थान पर उग्र तारीके से उत्तेजना पूर्ण ढंग से अनर्गल आरोप प्रत्यारोपों से अपना एंव देश का समय बार्बाद कर रहे है।
दूसरी ओर हमेशा की तरह भारत का भ्रष्ट मीडिया भी सरकार के सुर में सुर मिलाकर बहस को तर्कपूर्ण करने की बजाए सरकार के पक्ष में बयान देकर सिविल सोसायटी के अस्तित्व पर ही सवाल खडे़ करने में लगा हुआ है। आज एनडीटीवी पर चल रही बहस में विनोद दुआ जो देश की मीडिया के लिऐ एक बद्दुआ की तरह है , वह भी सर्वेक्षण के नतीजों पर ही सवाल खडे़ करता नजर आ रहा था तथा पत्रकारिता के नाम पर कलंक सरकारी पिट्ठू विनोद शर्मा भी उसके सुर में सुर मिलाता नजर आया।
अभी तो मात्र एक लोकसभा क्षेत्र के नतीजे आऐ है जिसमें 85 प्रतिशत लोगों ने सरकारी लोकपाल के विरूद्ध तथा जनलोकपाल के पक्ष में अपना मत प्रकट किया है तथा 94 प्रतिशत लोगों ने प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने हेतु अपना मत दिया है। यदि सरकार में हिम्मत है तो इस तरह का सर्वे सारे देश में करवाकर देख ले इससे कही अधिक प्रतिशत में मत जनलोकपाल के पक्ष में आऐगा। लेकिन सरकार ऐसा नही करेगी क्योंकि उससे उसकी पोल खुलने का डर है इसलिऐ सरकार भरसक प्रयत्यन करेगी कि अन्ना एवं सिविल सोसायटी के अभियान को बाबा के अभियान की तरह दमनपूर्ण ढंग से कुचल कर समाप्त कर दिया जाऐ लेकिन अब यह होने वाला नही है अब देश जाग चुका है।
सरकारी लोकपाल बिल तथा अन्ना एवं सिविल सोसायटी द्वार ड्राफ्ट किया गया जनलोकपाल बिल पर सिविल सोसायटी द्वारा कराये गये सर्वे के नतीजे आज सिविल सोसायटी द्वारा मीडिया के समक्ष रखे गये। कुटिल सिब्बल के चुनाव क्षेत्र चॉदनी चौक को सिविल सोसायटी ने जानबूझकर सर्वे के लिये चुना था क्योंकि कुटिल सिब्बल द्वारा हमेशा सिविल सोसायटी के सदस्यों पर यह आरोप लगाया जाता रहा है, कि सिविल सोसायटी के चार पॉच लोग सारे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते इसलिऐ हम इस सोसायटी को नही मानते लेकिन अब कुटिल के अपने चुनाव क्षेत्र में ही उनके इस आरोप की धज्जियॉ उड़ गयी है। अब अपने बचाव के लिऐ कुटिल सिब्बल संविधान की दुहाई देकर बडे़ इमोशनल ढंग से मीडिया के सामने बयान दे रहा है कि हमारे बुजुर्गो द्वारा 1950 में जो संविधान हमे दिया गया उसके सामानान्तर अलग से सिविल सोसायटी, जिसकी जवाबदेही किसी के प्रति भी नही है उसके द्वारा थोपा गया जनलोकपाल बिल को मान्य कर संविधान के ढॉचे से खिलवाड़ नहीं करने दिया जा सकता।
दूसरी और कॉग्रेस प्रवक्ता मनीष (मनहूस) तिवारी द्वारा बड़ी बेशर्मी से शायराना अंदाज में अन्ना एवं सिविल सोसायटी को सन 2014 के लोकसभा चुनावो ंमें चॉदनी चौक से चुनाव लड़कर जीतने का चैलेंज किया जा रहा है जो उनकी बौखालाहट को प्रदर्शित करता है। लगता है आज भी यूपीए खासकर कॉग्रेस सिविल सोसायटी को बहुत कम करके उसका ऑकलन कर रही है उसे शायद देश की नब्ज की जानकारी नहीं है इतना सब होने के बाद भी उन्हें आज भी सिविल सोसायटी के चार पॉच लोग ही दिखाई देते है लेकिन अंदर का धधकता ज्वालामुखी दिखाई नहंी दे रहा है जो अब फटने की कगार पर है?
यदि इनके उदाहरणों को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के परिपेक्ष्य में देखा जाऐ तो जब भारत में अंग्रेजों के विरूद्ध अहिंसक तरीके से भारत छोड़ो ऑदोलन चल रहा था तब भी सारे अभियान की बागडोर महात्मागॉधी के अलावा पॉच सात लोगो ंने थाम रखी थी लेकिन अंग्रेजों को देश की नब्ज की जानकारी थी उन्हंे मालूम था कि सारे देश में आग फैल चुकी है इसलिये वे इस अभियान से जुडे़ लोगों खासकर उसके अगुआ महात्मा गॉधी से हमेशा बातचीत का रास्ता ही अपनाते रहे ठीक इसके विपरीत आज के काले अंग्रेजों को इस बात का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है ? ऊपर से अहंकारी तरीके से एवं बौखलाकर ऊल जुलूल बयान देकर जनता के रोष को और बढ़ा रहे है। यूपीऐ एवं कॉग्रेस के सारे नेता मीडिया में स्वस्थय बहस के स्थान पर उग्र तारीके से उत्तेजना पूर्ण ढंग से अनर्गल आरोप प्रत्यारोपों से अपना एंव देश का समय बार्बाद कर रहे है।
दूसरी ओर हमेशा की तरह भारत का भ्रष्ट मीडिया भी सरकार के सुर में सुर मिलाकर बहस को तर्कपूर्ण करने की बजाए सरकार के पक्ष में बयान देकर सिविल सोसायटी के अस्तित्व पर ही सवाल खडे़ करने में लगा हुआ है। आज एनडीटीवी पर चल रही बहस में विनोद दुआ जो देश की मीडिया के लिऐ एक बद्दुआ की तरह है , वह भी सर्वेक्षण के नतीजों पर ही सवाल खडे़ करता नजर आ रहा था तथा पत्रकारिता के नाम पर कलंक सरकारी पिट्ठू विनो
सरकारी लोकपाल बिल तथा अन्ना एवं सिविल सोसायटी द्वार ड्राफ्ट किया गया जनलोकपाल बिल पर सिविल सोसायटी द्वारा कराये गये सर्वे के नतीजे आज सिविल सोसायटी द्वारा मीडिया के समक्ष रखे गये। कुटिल सिब्बल के चुनाव क्षेत्र चॉदनी चौक को सिविल सोसायटी ने जानबूझकर सर्वे के लिये चुना था क्योंकि कुटिल सिब्बल द्वारा हमेशा सिविल सोसायटी के सदस्यों पर यह आरोप लगाया जाता रहा है, कि सिविल सोसायटी के चार पॉच लोग सारे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते इसलिऐ हम इस सोसायटी को नही मानते लेकिन अब कुटिल के अपने चुनाव क्षेत्र में ही उनके इस आरोप की धज्जियॉ उड़ गयी है। अब अपने बचाव के लिऐ कुटिल सिब्बल संविधान की दुहाई देकर बडे़ इमोशनल ढंग से मीडिया के सामने बयान दे रहा है कि हमारे बुजुर्गो द्वारा 1950 में जो संविधान हमे दिया गया उसके सामानान्तर अलग से सिविल सोसायटी, जिसकी जवाबदेही किसी के प्रति भी नही है उसके द्वारा थोपा गया जनलोकपाल बिल को मान्य कर संविधान के ढॉचे से खिलवाड़ नहीं करने दिया जा सकता।
दूसरी और कॉग्रेस प्रवक्ता मनीष (मनहूस) तिवारी द्वारा बड़ी बेशर्मी से शायराना अंदाज में अन्ना एवं सिविल सोसायटी को सन 2014 के लोकसभा चुनावो ंमें चॉदनी चौक से चुनाव लड़कर जीतने का चैलेंज किया जा रहा है जो उनकी बौखालाहट को प्रदर्शित करता है। लगता है आज भी यूपीए खासकर कॉग्रेस सिविल सोसायटी को बहुत कम करके उसका ऑकलन कर रही है उसे शायद देश की नब्ज की जानकारी नहीं है इतना सब होने के बाद भी उन्हें आज भी सिविल सोसायटी के चार पॉच लोग ही दिखाई देते है लेकिन अंदर का धधकता ज्वालामुखी दिखाई नहंी दे रहा है जो अब फटने की कगार पर है?
यदि इनके उदाहरणों को भारत के स्वतंत्रता संग्राम के परिपेक्ष्य में देखा जाऐ तो जब भारत में अंग्रेजों के विरूद्ध अहिंसक तरीके से भारत छोड़ो ऑदोलन चल रहा था तब भी सारे अभियान की बागडोर महात्मागॉधी के अलावा पॉच सात लोगो ंने थाम रखी थी लेकिन अंग्रेजों को देश की नब्ज की जानकारी थी उन्हंे मालूम था कि सारे देश में आग फैल चुकी है इसलिये वे इस अभियान से जुडे़ लोगों खासकर उसके अगुआ महात्मा गॉधी से हमेशा बातचीत का रास्ता ही अपनाते रहे ठीक इसके विपरीत आज के काले अंग्रेजों को इस बात का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है ? ऊपर से अहंकारी तरीके से एवं बौखलाकर ऊल जुलूल बयान देकर जनता के रोष को और बढ़ा रहे है। यूपीऐ एवं कॉग्रेस के सारे नेता मीडिया में स्वस्थय बहस के स्थान पर उग्र तारीके से उत्तेजना पूर्ण ढंग से अनर्गल आरोप प्रत्यारोपों से अपना एंव देश का समय बार्बाद कर रहे है।
दूसरी ओर हमेशा की तरह भारत का भ्रष्ट मीडिया भी सरकार के सुर में सुर मिलाकर बहस को तर्कपूर्ण करने की बजाए सरकार के पक्ष में बयान देकर सिविल सोसायटी के अस्तित्व पर ही सवाल खडे़ करने में लगा हुआ है। आज एनडीटीवी पर चल रही बहस में विनोद दुआ जो देश की मीडिया के लिऐ एक बद्दुआ की तरह है , वह भी सर्वेक्षण के नतीजों पर ही सवाल खडे़ करता नजर आ रहा था तथा पत्रकारिता के नाम पर कलंक सरकारी पिट्ठू विनोद शर्मा भी उसके सुर में सुर मिलाता नजर आया।
अभी तो मात्र एक लोकसभा क्षेत्र के नतीजे आऐ है जिसमें 85 प्रतिशत लोगों ने सरकारी लोकपाल के विरूद्ध तथा जनलोकपाल के पक्ष में अपना मत प्रकट किया है तथा 94 प्रतिशत लोगों ने प्रधान मंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने हेतु अपना मत दिया है। यदि सरकार में हिम्मत है तो इस तरह का सर्वे सारे देश में करवाकर देख ले इससे कही अधिक प्रतिशत में मत जनलोकपाल के पक्ष में आऐगा। लेकिन सरकार ऐसा नही करेगी क्योंकि उससे उसकी पोल खुलने का डर है इसलिऐ सरकार भरसक प्रयत्यन करेगी कि अन्ना एवं सिविल सोसायटी के अभियान को बाबा के अभियान की तरह दमनपूर्ण ढंग से कुचल कर समाप्त कर दिया जाऐ लेकिन अब यह होने वाला नही है अब देश जाग चुका है।
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